Tuesday, January 24, 2012

Raat ke shaane se

Another one from archives (Oct 2010) ...

रात के शाने से आँचल नींदों के ढलक जायेंगे
गिरते सँभलते यूँ ही जबीं-ए-सहर तलक जायेंगे

दर आँखों के बंद कर लो कि ये एहसास छुपे रहें
पलकें अगर खुलीं तो ये दर्द छलक जायेंगे

ख्वाब फिरते हैं हकीक़त के शहर में बंजारे से
सफ़र पे निकले तो ये मुसाफिर दूर तलक जायेंगे

तमन्नाओं के बेबस पंछी बैठे ज़मीं पर तकते हैं
मिले अगर परवाज़ तो फिर बाम-ए-फलक जायेंगे

बेफिक्र सी हंसी पर कभी गौर भी तुम करना
इस मद्धम सी धार में तूफान झलक जायेंगे
 

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